श्री नर्मदा चालीसा

॥ दोहा॥ देवि पूजित, नर्मदा, महिमा बड़ी अपार । चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार॥

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Last updated on : Wed, 29-Mar-2023 Hindi-gujarati

श्री नर्मदा चालीसा

॥ दोहा॥

देवि पूजित, नर्मदामहिमा बड़ी अपार ।

चालीसा वर्णन करतकवि अरु भक्त उदार॥

इनकी सेवा से सदामिटते पाप महान ।

तट पर कर जप दान नरपाते हैं नित ज्ञान ॥

 ॥ चौपाई ॥

 जय-जय-जय नर्मदा भवानीतुम्हरी महिमा सब जग जानी ।

अमरकण्ठ से निकली मातासर्व सिद्धि नव निधि की दाता ।

कन्या रूप सकल गुण खानीजब प्रकटीं नर्मदा भवानी ।

 सप्तमी सुर्य मकर रविवाराअश्वनि माघ मास अवतारा ॥

 वाहन मकर आपको साजैंकमल पुष्प पर आप विराजैं ।

 ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैंतब ही मनवांछित फल पावैं ।

 दर्शन करत पाप कटि जातेकोटि भक्त गण नित्य नहाते ।

 जो नर तुमको नित ही ध्यावैवह नर रुद्र लोक को जावैं ॥

 मगरमच्छा तुम में सुख पावैंअंतिम समय परमपद पावैं ।

 मस्तक मुकुट सदा ही साजैंपांव पैंजनी नित ही राजैं ।

 कल-कल ध्वनि करती हो मातापाप ताप हरती हो माता ।

 पूरब से पश्चिम की ओराबहतीं माता नाचत मोरा ॥

 शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैंसूत आदि तुम्हरौं यश गावैं ।

 शिव गणेश भी तेरे गुण गवैंसकल देव गण तुमको ध्यावैं ।

 कोटि तीर्थ नर्मदा किनारेये सब कहलाते दु:ख हारे ।

 मनोकमना पूरण करतीसर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं ॥

 कनखल में गंगा की महिमाकुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा ।

 पर नर्मदा ग्राम जंगल मेंनित रहती माता मंगल में ।

 एक बार कर के स्नानातरत पिढ़ी है नर नारा ।

 मेकल कन्या तुम ही रेवातुम्हरी भजन करें नित देवा ॥

 जटा शंकरी नाम तुम्हारातुमने कोटि जनों को है तारा ।

 समोद्भवा नर्मदा तुम होपाप मोचनी रेवा तुम हो ।

 तुम्हरी महिमा कहि नहीं जाईकरत न बनती मातु बड़ाई ।

 जल प्रताप तुममें अति माताजो रमणीय तथा सुख दाता ॥

 चाल सर्पिणी सम है तुम्हारीमहिमा अति अपार है तुम्हारी ।

 तुम में पड़ी अस्थि भी भारीछुवत पाषाण होत वर वारि ।

 यमुना मे जो मनुज नहातासात दिनों में वह फल पाता ।

 सरस्वती तीन दीनों में देतीगंगा तुरत बाद हीं देती ॥

 पर रेवा का दर्शन करके मानव फल पाता मन भर के ।

 तुम्हरी महिमा है अति भारीजिसको गाते हैं नर-नारी ।

 जो नर तुम में नित्य नहातारुद्र लोक मे पूजा जाता ।

 जड़ी बूटियां तट पर राजेंमोहक दृश्य सदा हीं साजें ॥

 वायु सुगंधित चलती तीराजो हरती नर तन की पीरा ।

 घाट-घाट की महिमा भारीकवि भी गा नहिं सकते सारी ।

 नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजाऔर सहारा नहीं मम दूजा ।

 हो प्रसन्न ऊपर मम मातातुम ही मातु मोक्ष की दाता ॥

 जो मानव यह नित है पढ़ताउसका मान सदा ही बढ़ता ।

 जो शत बार इसे है गातावह विद्या धन दौलत पाता ।

 अगणित बार पढ़ै जो कोईपूरण मनोकामना होई ।

 सबके उर में बसत नर्मदायहां वहां सर्वत्र नर्मदा ॥

 ॥ दोहा ॥

 भक्ति भाव उर आनि केजो करता है जाप ।

 माता जी की कृपा सेदूर होत संताप॥

 ॥ इति श्री नर्मदा चालीसा ॥